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Showing posts from November, 2008
नासा ने किया पहले अंतरिक्ष इंटरनेट का परीक्षण
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वाशिंगटन। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी “नासा” ने इंटरनेट आधारित सुदूर अंतरिक्ष संचार तंत्र का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लेने की बात कही है। अर्थात नासा अब अंतरिक्ष से पृथ्वी के बीच इंटरनेट से संपर्क कर सकती है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार नासा के इंजीनियरों ने पृथ्वी से लगभग 300 किलोमीटर दूर स्थित नासा के एक वैज्ञानिक अंतरिक्षयान के साथ दर्जनों चित्रों का आदान-प्रदान किया। इसके लिए डिसरप्शन टालरेंट नेटवर्किंग(डीटीएन) नामक एक विशेष सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया। वाशिंगटन स्थिति नासा मुख्यालय में अंतरिक्ष नेटवर्किंग संरचना, प्रौद्योगिकी व मानक मामलों के प्रबंधक और टीम के अगुआ एड्रियान हूक ने कहा कि अंतरिक्ष संचार की बिल्कुल नई क्षमता विकसित करने की दिशा में यह पहला कदम है।
खोया खोया चांद
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खोया खोया चांद प्रेमी चांद पर बहुत भरोसा करते हैं। कभी चांद को महबूब तो कभी महबूब को चांद बना देते हैं। पता नहीं यह रिश्ता कब से बनता चला आ रहा है। इस दुनिया में प्रेमियों ने अपनी अभिव्यक्तियों की लंबी विरासत छोड़ी है। जिसमें चांद स्थायी भाव से मौजूद है। कोई बात नहीं कर रहा हो तो हाल-ए- दिल सुनने सुनाने के लिए चांद है। वो कल्पना भी अजब की रही होगी की महबूब चांद को देख महबूबा को याद किया करते होंगे। पता नहीं दुनिया के किस पहले प्रेमी ने सबसे पहले चांद में अपनी महबूबा का दीदार किया। किसने सबसे पहले देखा कि चांद देख रहा है उसके प्रेम परिणय को। बालीवुड का एक गाना बहुत दिनों से कान में बज रहा है। मैंने पूछा चांद से कि देखा है कहीं..मेरे प्यार सा हसीं..चांद ने कहा नहीं..नहीं। यानी चांद गवाह भी है। वो सभी प्रेमियों को देख रहा है। तुलना कर रहा है कि किसकी महबूबा अच्छी है। और किसकी सबसे अच्छी। पता नहीं इस प्रेम प्रसंग में चांद मामा कैसे बन जाता है। जब इनके बच्चे यह गाने लगते हैं कि चंदा मामा से प्यारा...मेरा...। क्या चांद महबूबा का भाई है? क्या प्रेमी महबूबा के भाई से हाल-ए-दिल कहते हैं? प
टिनअहिया हीरो
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भाषा हेडमास्टर है। बोली उदंड छात्राएं। उदंड के साथ साथ स्वतंत्र खयालों वाली छात्राएं। जो व्याकरण की छड़ी से खुद को नहीं हांकती। बल्कि चुपचाप नए शब्द नए वाक्य कहीं से उठा लाती हैं और बोल चलती हैं। बोलियों में बहुत सारे शब्द अवधारणाओं के बनने के बाद बनते हैं। उसे अभिवयक्त करने की ललक एक नए शब्द को जन्म दे देती हमारे इलाके में एक शब्द प्रचलित था टिनअहिया हीरो । यह एक खास किस्म का हीरो हुआ करता था। जो बांबे दिल्ली से लौटा होता था। सस्ती जीन्स, लाल कमीज़, चश्मा और होठों से सरकते पान के पीक। टिनअहिया हीरो से गांव के देशज लड़के बहुत चिढ़ते थे। वह ग्रामीण समाज में एक शहरी अपभ्रंश की तरह आ चुका होता था। मिलता अक्सर पान की दुकान पर था। जब चलायमान होता तो देखने लायक होती। वह धीरे धीरे सायकिल छोड़ सेकेंड हैंड मोटरसायकिल की सवारी करने लगता। उसकी हेयर स्टाइल किसी हीरो से मिलती थी। अक्सर गांव के लोग उसे सामने पाकर हीरो कहते थे और उसके जाने के बाद टिनअहिया हीरो। इसका बटुआ भी खास रंग का होता था। कवर पर विद्या सिन्हा या रेखा की तस्वीर हुआ करती थी। सिगरेट सरेआम पी डालता था। लगता था कि कोई शहर से आया है।